शायद इस तरह मेरा परिचय नहीं था. मैं अरुण चन्द्र रॉय , सरोकार ब्लॉग के माध्यम से आम जीवन से मेरे सरोकार को कविता के माध्यम से अभिव्यक्त करता था. कल शाम से यह ब्लॉग ना जाने क्यों खुल नहीं रहा.. मेरे डैशबोर्ड से भी गायब है... सरोकार ब्लॉग पर मेरी कोई १८० कवितायें थी..और इस से अधिक करीब ९० फालोवर मित्र.... इनका कोई बैक अप भी नहीं है मेरे पास... पता नही यह ब्लॉग फिर कभी वापिस आयेगा कि नहीं.. हमारे गाँव में यदि कोई खो जाता था.. और यदि उसके लौटने की आशंका नहीं भी होती थी तब भी १२ वर्षों तक उसका इन्तजार किया जाता था.. इन्तजार मैं भी करूँगा...कोई मदद कर सकें उसे वापिस लाने या उसके डाटा को वापिस लाने के लिए तो बहुत आभारी रहूँगा... लेकिन किसी के होने या ना होने से जिन्दगी रूकती नहीं है... सो नहीं रुकूँगा मैं भी ... अपना सरोकार... अपने आसपास की दुनिया के प्रति मेरा सरोकार जारी रहेगा... कविता मेरी प्रतिबद्धता है वहां के लिए जहाँ मैं रहता हूँ.. जहाँ से आया हूँ.. या कहिये जीवन के लिए... कोरियर ब्यॉय कविता के पोस्ट करते ही सरोकार खो गया मेरा.. इसी कविता से फिर "अपने सरोकार" को शुरू कर रहा हूँ... वही पुराना प्यार, स्नेह एवं आशीष देंगे... प्रस्तुत है... अरुण चन्द्र रॉय का नया सरोकार .. अपने सरोकार, अपनों के लिए ....
कोरियर ब्यॉय
मिल जाता हैसीढ़ियों में
अक्सर ही
दफ्तर की
चढ़ते उतरतेहाथ में नीला सा बैग लिएजिस पर छपा है उसकी कंपनी का
बड़ा सा 'लोगो'
कंपनी के कारपोरेट रंग का
यूनिफार्म पहने
स्मार्ट सा कोरियर ब्यॉय
दस मंजिल तक
चढ़ जाता है वह
किस्तों में
हाँफते हुए
भागते हुए
एक दफ्तर से
दूसरे दफ्तर
बांटते पैकेट
लिफाफे
जिसे गारंटी से डिलीवर करना होता है
दोपहर बारह बजे से पहले
कंपनी की कारपोरेट नीति और
प्रीमियम सेवा के लिए
प्रीमियम दाम के बदले
लगता है
कभी कभी
मुझे खेतों के बैल
बंधुआ मजूर सा
वह स्मार्ट सा
कोरियर ब्यॉय
जिसे नहीं पता कि
न्यूनतम मजदूरी क्या है
इस मेट्रो शहर में .
NAYI PAARI PAR SHUBHAKAAMANAAEN
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति ..कल से आपके ब्लॉग को कई बार खोलने का प्रयास किया था ...मुझे लगा की मेरे कंप्यूटर में ही कुछ दिक्कत आ रही है ....
ReplyDeleteword verification hata den
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
ReplyDeleteकोरियर ब्बाय के माध्यम से आज की ज़िन्दगी की आपाधापी को बहुत ही खूबस्रूरती से दर्शाया है……………यूँ लगता है जैसे सामने देखकर चित्रित किया है कविता को…………यही पैनापन आपकी लेखनी को सशक्त बनाता है।
ReplyDeleteलगता है
ReplyDeleteकभी कभी
मुझे खेतों के बैल
बंधुआ मजूर सा
वह स्मार्ट सा
कोरियर ब्यॉय
जिसे नहीं पता कि
न्यूनतम मजदूरी क्या है
इस मेट्रो शहर में .
........
सच कहा आपने . गाँव के बंधुआ मजदूर का ही परिष्कृत रूप है ये कोरिअर ब्वॉय . इसकी मेहनत कम्पनी की प्रतिष्ठा और नाम बढाती है पर वही कंपनी नयूनतम मजदूरी देने में कतराती है . समाज की अव्यवस्थाओं को ऊजागर करती आपकी कविता आपके नए ब्लॉग "अपने सरोकार" को अर्थ देती है. नए ब्लॉग के शुभारम्भ पर शुभकामनाएं और पुराना ब्लॉग भी मिल जाए ऐसी कामना के साथ.
बहुत ही जिम्मेदार रचना..... कौन कहता है कि कवि देश और काल से निरपेक्ष होता है. एक बार फिर आपके बिम्ब खुल कर बोल रहे हैं. धन्यवाद !
ReplyDeletejindagi ke daur me bahut se aise saks milte hain, jo hamari jindagi ko behtar banate hai......par ham itne samvedansheel ho nahi pate ki unke baare me sochen bhi...........
ReplyDeleteaapne sie savh me bahut pyari rachna un par dedicate ki hai
abhar!!!!
jindagi ke daur me bahut se aise saks milte hain, jo hamari jindagi ko behtar banate hai......par ham itne samvedansheel ho nahi pate ki unke baare me sochen bhi...........
ReplyDeleteaapne sir sach me bahut pyari rachna un par dedicate ki hai
abhar!!!!
एक आम कोरिअर वाले के जीवन को जी लिया है आपने इस रचना में ...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग के बारे में जान कर बहुत अफोसोस हुवा ... कहीं किसी ने हेक न कर लिया हो ...
एक गहरा कंट्रास्ट लिये है कविता, एक ओर प्रीमियम सेवा के बदले प्रीमियम दाम तो दूसरी ओर उस प्रीमियम सेवा को सुनिश्चित करने की प्रमुख कड़ी कोरियर ब्वॉय जिसे उसके अधिकारों की आधार जानकारी भी नहीं।
ReplyDeleteदर से दर तक सेवा की आधारशिला
खुश है पाकर जितना भी आधार मिला।
blog ke baare me sunkar bahut dukh huya ! aapke hausle ki daad deta huN ki bina ruke fir se shuru ho gaye.
ReplyDeleteअरुण जी! जिस मुहूर्त्त में यह दुर्घटना हुई, उसका प्रथम द्रष्ट्या साक्ष्य हूँ मैं.. और शायद पहला व्यक्ति भी जिसने आपसे फोन करके इस विषय पर बात की.. इतना कुछ अपनी तारीफ के लिए नहीं, सिर्फ यह बताने के लिए कि आपके सरोकार से ख़ुद को जुड़ा पाता हूँ मैं कहीं न कहीं... जो खोया है महानगर के जीवन में उसे पाता हूँ सरोकार में..
ReplyDeleteअब इसी कुरियर ब्वॉय को ले लीजिए... हर रोज़ मिलता हूँ इससे और गर्मी की दोपहर से लेकर सर्दी की ठ्ण्ड में भागते हुए देखता हूँ... एक विशाल मशीन का एक छोटा किंतु महत्वपूर्ण पुर्ज़ा, किंतु उपेक्षित...
पुनश्चः कानून ने भी 7 साल की गुमशुदगी को मृत्यु का प्रमाण माना है!! आशांवित रहें!!
ये तो आश्चर्यजनक घटना है कि पूरा का पूरा ब्लॉग ही ग़ायब हो जाए। आपकी तो काफ़ी क्शःअति हो गई। इस नए ब्लॉग के लिए अशेष शुभकामनाएं।
ReplyDeleteप्रस्तुत कविता में आपने एक उपेक्षित से लोगों को साध कर बढिया निशाना साधा है।
आप अपने ब्लॉग की xml फाइल डाउनलोड कर के रख लें.
ReplyDeleteशुक्रिया ,
ReplyDeleteअपनों से सरोकार और कविता को माध्यम .....यानी .नेकी और अक्लमंदी
ब्लॉग के बारे में जानकार अफ़सोस हुआ ...... मेरा पूरा कलाम कार में से चोरी हो गया था ,आज तक नहीं मिला बस एक सीख ज़रूर मिल गयी कि अपनी हर रचना की एक कॉपी ज़रूर रखनी चाहिए ...आपके दर्द का एहसास है , ब्लॉग का प्रिंट निकाल लें ..मुझे भी एक mushaire में कुछ शुभचिंतकों ने मेरे पूरे ब्लॉग की प्रिंट कॉपी निकाल कर ७ दिन पहले ही दी है .अपनों का सरोकार आज समझ आया .....thanx २ dm
वैसे दुआ तो यही करुँगी की आपका ब्लॉग सुरक्षित हो .