मंदिर से
जब भी गुजरता हूँ
लगता है
तुम हो वहां
तुम्हारे घर से
जब भी गुजरता हूँ
मंदिर सा लगता है
लगता है
तुम हो वहां
तुम्हारे घर से
जब भी गुजरता हूँ
मंदिर सा लगता है
चढ़ते हुए सीढियां
मंदिर की
लगता है
तुम हो साथ
बांधे दोनों हाथ
श्रद्धा से
ईश्वर के सामने
करता हूँ आराधना
बंद आँखों के सामने
आ जाता है
चेहरा तुम्हारा मुस्कुराता
कहता है
क्यों हो झोली फैलाये
सब कुछ तो है
पास तुम्हारे
पहुंचना चाहता हूँ जब
तुम्हारे घर
पवित्रता बढ़ जाती है मन की
लगता है कदम
बढ़ रहे है
देवालय की ओर
कानों में शंख ध्वनि
सुनाई देने लगती है
देखकर तुम्हें
शांत हो जाता है मन
मानो पा लिया हो मोक्ष
मिल गया हो निर्वाण
संतुष्टि का भाव
भर जाता है मन प्राण में
फिर कुछ और की
कामना ही नहीं बचती .
असमंजस में हूँ
कि मंदिर में
मिलती हो तुम
और तुम्हारे घर भगवान
घर है मंदिर
या मंदिर है तुम्हारा घर
दोनों एक दूसरे में
विलीन हो गए है
अब तुम्हीं बताओ
जाऊं किधर मैं .